कामकाजी महिलाओं के लिए चुनौतियां: घर और बाहर दोनों में कैसे सामंजस्य स्थापित करें

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‘कामकाजी महिलाओं के लिए चुनौतियाँ’ ये सब सुनकर मुझे एक छोटी-सी पुरानी कहानी याद आ गई। एक बच्ची अपने भाई को पीठ पर लाद कर पहाड़ चढ़ रही थी। वह हांफ रही थी, थकी थी, लेकिन खुश थी। एक पर्यटक ने कहा ‘इतना बोझ उठा कर चलोगी तो थकोगी ही, इसे नीचे उतार क्यों नहीं देती।’ छोटी बच्ची ने कहा ‘ये बोझ नहीं, मेरा भाई है।’ ऐसा कह वह पहले की तरह ही धीरे-धीरे पहाड़ चढ़ती रही। परिवार और नौकरी- दोनों ही मेरे लिए चुनौती या बोझ नहीं बल्कि मेरे सहारे हैं, जिन्हें मैं खुशी से स्वीकार की हूँ।  

चुनौती नहीं शक्ति

जब मैं चुनौती शब्द सुनती हूँ तब यही सोचती हूँ क्या है चुनौती? मेरा घर? परिवार? नौकरी? या इन सब में सामंजस्य? निश्चय ही चौथा। पहले तीन तो मेरी शक्ति हैं, परिवार से मुझे अपने जीवन का महत्त्व पता चलता है, मानसिक एवं भावनात्मक मजबूती मिलती है। नौकरी या व्यवसाय मुझे आर्थिक स्वावलंबन देने के साथ-साथ बाहरी दुनिया का ज्ञान देकर मेरे अनुभव और कुशलता को बढ़ता है। लेकिन हाँ! मेरी क्षमता सीमित है, समय सीमित है, इसलिए दोनों में सामंजस्य लाने के लिए मुझे अपने अंदर अधिक कार्यकुशलता विकसित करना पड़ेगा।

टाइम मैनेजमेंट

घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए समय प्रबंधन यानि टाइम मैनेजमेंट करना ही होगा, इसका कोई विकल्प नहीं है। इसके दो मंत्र हैं:

1. कार्यों का आवंटन

सब कार्य स्वयं न कर अगर संभव हो तो कुछ कार्य किसी दूसरे को आबंटित कर दूँगी। बच्चों में यह आदत डालूँगी कि स्कूल से आने के बाद अपने बैग, जूते, कपड़े आदि उनके स्थान पर ही रखें। छोटे-मोटे कार्य घर के सभी सदस्य मिल कर करें।

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2. समय का सदुपयोग  

समय लेने वाले गैर जरूरी गतिविधियों को सीमित करूंगी। काम के बीच-बीच में सोशल मीडिया देखते रहना, फोन पर अनावश्यक लंबी बातें, निगेटिव या चापलूसी करने वाले लोगों को अधिक समय देना आदि ऐसी गतिविधियां हो सकती हैं।     

अपेक्षा (एक्सपेक्टिशंस) में सावधानी

कई बार हम अपनेआप से या अपने लोगों से बहुत अधिक अपेक्षा कर लेते हैं। ‘ये काम मुझे इस दिन तक करना ही है’, ‘मेरे बच्चे को इस बार 95% लाना ही है’ ‘इस साल मुझे प्रोमोशन लेना ही है’ ‘इस साल अपना घर लेना ही है’ इत्यादि। अपेक्षा अच्छी चीज है, यह अच्छे से काम करने के लिए हमे प्रोत्साहित करती है। किन्तु अगर इसकी अधिकता हो जाय, या इसे अधिक गंभीरता से ले लिया जाय तो तनाव भी देती है जिससे काम करने की क्षमता पर निगेटिव प्रभाव पड़ता है; असफल होने का भाव आने लगता है; हम चिड़चिड़े होने लगते हैं, हमारा दृष्टिकोण नकारात्मक होने लगता है।

स्वास्थ्य का ध्यान रखें

काम घर का हो या बाहर का, शारीरिक हो या मानसिक, हमारे स्वास्थ्य से बहुत अधिक प्रभावित होता है। गर्दन दर्द हो रहा है, डॉक्टर व्यायाम करने के लिए बोल रहा है लेकिन मेरे पास समय नहीं है, मैं दवा खा कर काम कर रही हूँ। लेकिन कब तक? इसलिए शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने का प्रयास करना होगा। साथ ही घर का वातावरण भी स्वस्थ और सकारात्मक रखना होगा।