वरिष्ठ पर्यटन: आवश्यकता या विलासिता?

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हम में से कई लोगों ने स्कूल में पर्यटन पर निबंध लिखा होगा। पर्यटन से देश के आर्थिक वृद्धि को गति मिलती है, रोजगार सृजन होता है, देश के आधारभूत संरचनाओं का विकास होता है, सांस्कृतिक अंतरण होता है, इत्यादि-इत्यादि। लेकिन जब हम बड़े होते हैं और घर परिवार की जिम्मेदारियाँ आती हैं, तब हमे अन्य इतने जरूरी कार्य होते हैं कि इन सब को भूल जाते हैं।

      बहुत से लोग पर्यटन को धनी और शारीरिक रूप से मजबूत लोगों का शौक मानते हैं। वे उसे जरूरी नहीं समझते हैं। कुछ लोगों के लिए यह एक प्रकार की विलासिता है। पैसों की बर्बादी है। इसलिए शारीरिक एवं आर्थिक रूप से सक्षम होने पर भी वे घर एवं दफ्तर से बाहर कहीं और नहीं जाना चाहते हैं।      

      यह सही है कि घर में हर तरह का आराम और सुविधा होती है। हम इन सुविधाओं के आदी हो जाते हैं। लेकिन इन आराम और सुविधा से अलग जगह पर जाना हमारे लिए कई तरह से उपयोगी हो सकता है। जैसे:

1. उस जीवन शैली से, जिसके आदी हम होते हैं, अलग जब हम किसी नए स्थान पर जाते हैं, तो वहाँ एक अलग जीवन शैली अपनाना पड़ता है। इस नयेपन से हमारा मस्तिष्क अधिक जागरूक और सतर्क हो जाता है। इस से हमारी मनोदशा (मूड) पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

2. नए स्थान पर हम नए लोगों से मिलते हैं। उनकी जीवन शैली, भाषा, खानपान, पर्व-त्योहार, कला-संस्कृति इत्यादि से परिचित होते हैं। इन सब अनुभव से हमारी विचार शक्ति बढ़ती है।

3. एक निश्चित दिनचर्या के कार्यों से एकरसता और कार्यों के प्रति उदासीनता आ जाती है। हम बिना रुचि के कर्तव्य समझ कर उसे करते चले जाते हैं। लेकिन अगर इन कार्यों से कुछ दिनों के लिए छुट्टी ले ली जाए। तो छुट्टी से वापस आने पर उन कार्यों पर सकारात्मक मनोदशा से, नए दृष्टिकोण के साथ उस पर विचार करते हैं। फलतः नई ऊर्जा के साथ फिर से काम को करना शुरू करते हैं। इससे हमारे कार्यों की उत्पादकता बढ़ जाती है।

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4. आज के व्यस्त ज़िंदगी में हमे अपनों के साथ रहने का अवसर बहुत कम मिल पाता है। कई बार एक साथ, एक घर में रहने के बावजूद हम एक-दूसरे के साथ फुर्सत के कुछ क्षण नहीं बिता पाते हैं। अगर मिलते भी हैं तो कोई मोबाइल में तो कोई टीवी में व्यस्त रहता है। लेकिन अगर परिवार के इन्हीं सदस्यों के साथ, या मित्रों के साथ कहीं यात्रा पर जाते हैं तो उनके साथ अधिक समय बिता पाते हैं। उनसे करने के लिए यात्रा संबंधी कई बातें होती हैं। इन से वापस आने पर भी आपसी संबंध अच्छे और ऊर्जा से भरे हुए होते हैं।

5. यात्रा के नए अनुभव जीवन के नए आयामों को देखने और नई चीजों के खोज के प्रति उत्सुकता बढ़ा देता है।

6. नए अनुभवों और जीवन के एकरसता के टूटने से तनाव एवं नकरात्मक मनोदशा से निकलना आसान हो जाता है। हम तनाव मुक्त एवं ऊर्जावान अनुभव करने लगते हैं।

7. पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए वहाँ के आधारभूत संरचनाओं का विकास किया जाता है। स्थानीय शिल्प, कला एवं संस्कृति को बढ़ावा दिया जाता है। रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। इससे उस स्थान का विकास तो होता ही है, लेकिन जो पर्यटक वहाँ आते हैं, उन्हें भी अपने शिल्प, अपनी कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। इसके लिए नए-नए विचार आते हैं।

      संक्षेप में पर्यटन जीवन स्तर को उन्नत करने में सहयोग करता है। वरिष्ठ लोगों को इसकी अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि उनके पास समय होता है, जीवन के अनुभव होते हैं। पर साथ ही अकेलापन एवं नकारात्मक भावनाएँ भी होती हैं। पर्यटन से उन्हें अकेलापन एवं नकारात्मकता जैसे विचारों से मुक्ति मिलती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

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      सप्ताह भर काम करके थके हुए लोगों को अगर एक-दो दिन की छुट्टी मिलती है तो स्वाभाविक रूप से फुर्सत में आराम से रहना चाहते हैं, इस दिन भी वे रास्ते के आपाधापी में पड़ना नहीं चाहते। पर, अगर आप कहीं ऐसी जगह जाते हैं जहाँ आपको नई चीजें देखने और जानने के लिए मिलती है। आप नए लोगों से आप मिलते हैं। खूबसूरत अनुभव लेते हैं। तो एक नए उत्साह के साथ काम कर पाएंगे।

      इसलिए अपने रोजगार एवं आर्थिक और शारीरिक स्थिति को संतुलित रखते हुए कम-से-कम वर्ष में एक बार ऐसा समय जरूर निकाले जिसमें आप अपने रोज के कामों से अलग हट कर कुछ नया कर सके, कुछ नया अनुभव कर सकें। पर्यटन इसके लिए एक अच्छा माध्यम है।

      पर्यटन का अर्थ यह नहीं है कि आप अपने बजट से ज्यादा खर्च कर कहीं दूर ही जाएँ। वास्तव में पर्यटन का अर्थ है अपने रोज़मर्रा के ज़िंदगी से अलग हट कर किसी ऐसी जगह जाना जहाँ जाना कोई काम नहीं हो बल्कि फुर्सत के कुछ समय घर से निकल कर एक नए वातावरण में बिताने का उद्देश्य हो। यह स्थान दूर भी हो सकता है और पास भी।

      हम सोचते हैं कि इस सीमित समय और पैसे से कोई और जरूरी कार्य कर लिया जाय। कई बार हम सोचते हैं कि घूमने-फिरने के बजाय अभी अपनी ज़िम्मेदारी निभा लेते हैं, बाद में घूम लेंगे। और जब हम जिम्मेदारियों से निवृत होते हैं तब तक शरीर साथ छोड़ने लगता है। हम डॉक्टर और दवाइयों के सहारे जीने लगते हैं।

     इसलिए भागदौड़ भरी ज़िंदगी के बीच ही कुछ समय घूमने-फिरने के लिए भी निकालने का प्रयास करें। अगर दूर नहीं तो उपलब्ध समय और पैसे के अनुरूप किसी पास के स्थान पर जाएँ, व्यक्तिगत नहीं तो सार्वजनिक यातायात के साधनों से जाएँ, अकेले नहीं तो समूह के साथ जाएँ लेकिन जाएँ जरूर।

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पर्यटन के खतरे

      एक तरफ वरिष्ठ पर्यटन के जहाँ इतने लाभ हैं वही इसके कुछ खतरे भी हैं। इन खतरों के प्रति सावधानी आवश्यक है।

1. सबसे पहला खतरा स्वास्थ्य संबंधी है। समान्यतः उम्र बढ्ने के साथ-साथ शरीर कई बीमारियों का अड्डा बन जाता है। कार्य करने की क्षमता घट जाती है। थकान जल्दी अनुभव होने लगता है। पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। ब्लैडर मूवमेंट पर नियंत्रण कम हो जाता है, जिससे उन्हें बार-बार टॉइलेट जाना पड़ता है। ऐसे में लंबी यात्रा करना उनके लिए तकलीफदेह हो सकती है। वरिष्ठ लोगों का मूड बड़ी तेजी से बदलता है। वे भावनात्मक रूप से असंतुलित भी हो सकते हैं। ऐसे में हो सकता है कि उनके लिए यात्रा का अनुभव अधिक सुखद नहीं रह सके।

2. साधारणतः वरिष्ठ लोग अपने बचत, पेंशन या किराया आदि से ही यात्रा का खर्च उठाते हैं। आय के ये साधन सीमित होते हैं क्योंकि इनमें बढ़ने की संभावना कम होती हैं। ऐसे में अगर किसी यात्रा में अधिक खर्च हो जाए तो ये आर्थिक परेशानी में पड़ सकते हैं।

3. वरिष्ठ लोग अपराध के सॉफ्ट टार्गेट होते हैं।

4. ये संचार के आधुनिक तकनीकों का प्रयोग तो कर लेते हैं किन्तु वास्तव में उन्हें इनकी अधिक जानकारी नहीं होती है। ऐसे में ये जालसाजों के जाल में फंस सकते हैं। कई वरिष्ठ लोग इंटरनेट फ्रॉड के शिकार हो जाते हैं। अतः इन सब से सावधान रहना भी जरूरी है।  

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