हेडलाइंस का भारत

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इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला– लड़की के पैजामे का नाड़ा ……… रेप नहीं है’, इस हेडलाइंस को अगर ऐसे लिखा जाता ‘इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला- लड़की के पैजामे का नाड़ा…… रेप नहीं, ग्रेव sexual assault है’ तो क्या इसकी प्रतिक्रिया ऐसी ही होती जैसे अभी हुई है। शायद नहीं। शायद तब लोग दोनों में तुलना करते, अधिक गंभीरता से इस पर विमर्श करते या आलोचना करते। पर इस अधूरी हेडलाइन के कारण अभी लोग केवल गालियां बक रहे हैं। कोई विचार नहीं दे रहे।        

वास्तव में मीडिया और सोशल मीडिया में खबरों की जो हेडलाइंस होती हैं, वह उसे लिखने वाले और पढ़ने वाले- दोनों के दिल और दिमाग की बहुत ही स्पष्ट झलक दिखला जाते हैं, बिना पूरी खबर पढ़े ही। कुछ उदाहरण देख लीजिए और विचार कीजिए क्या आपने भी ऐसे हेडलाइंस देखे हैं?: 

1. ‘…. में दलित युवती की बेरहमी से बलात्कार कर हत्या’, ‘……. में दलित युवक की पीट-पीट कर हत्या’, ‘……में मुस्लिम युवक की हत्या’, ‘ब्राह्मण बच्चे का गला काट दिया गया, ब्राह्मण समाज चुप नहीं बैठेगा…..’, इत्यादि। इनमें से अगर जाति/धर्म का नाम हटा दिया जाता तो मरने वाले के कष्ट में क्या फर्फ पड़ जाता? कुछ भी नहीं। पर इसे लगाने से मीडिया और लोगों को मसाला मिल जाता है। ध्यान पीड़ित और उसकी पीड़ा से हट कर कहीं और केन्द्रित हो जाता है। जब हम पीड़ित की जाति/धर्म देखते हैं तब अपराधी का भी जाति/धर्म हो जाता है। यहाँ तक की अपराधी को या तो पीड़ित या फिर अपने समुदाय का हीरो बना दिया जाता है। यही कारण है कि लारेंस विश्नोई और मुख्तार अंसारी जैसे अपराधी को भी कुछ लोग हीरो की तरह देखने लगते हैं। किस को पता है क्या कि देश में ऐसा कौन सा धार्मिक समुदाय है, कौन सी जाति है, जिसके विरुद्ध कोई अपराध नहीं हुआ है आज तक? कोर्ट केस को अगर एक मोटा मापदंड माने तो सबसे ज्यादा झगड़े अपने समुदाय, पहचान और परिवार में ही होते हैं। 

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2. ‘प्रेम प्रसंग में युवक की हत्या’, ‘भूमि विवाद में हत्या’, ‘प्रेम त्रिकोण में पति ने पत्नी की हत्या की’, – ऐसे हेडलाइंस लोगों को पुलिस एवं कोर्ट से पहले ही, या यूं कहें, अपराध के तुरंत बाद ही, अपराध का कारण भी बिलकुल ही सरल तरीके से बता देते हैं। प्रेम एवं अपराध…. यानि रोमांस एवं एक्शन। यह तो हिट होने की गारंटी पहले से ही है। इसी मसाला का प्रयोग खबर में ही होता है। मुस्कान-साहिल द्वारा सौरभ को मारना प्रेम से ज्यादा नशा एवं मानसिक बीमारी का केस है, पर लोगों को एक्शन रोमांस ज्यादा आकर्षित करता है, इसलिए हेडलाइंस मुस्कान-साहिल प्रेम के आसपास ही घूम रहे हैं। बहुत से केस में हो सकता है कि कारण बाद में गलत साबित हो। पर इससे पहले ही लोगों का perception बन जाने के कारण संबन्धित लोगों का जो नुकसान होता है उसकी कोई भरपाई नहीं हो सकती।

3. एक और रोचक कैटेगरी दिखता है हेडलाइंस का। ‘एक महिला समेत चार लोगों की मृत्यु’, ‘दुर्घटना में 2 महिला समेत 9 लोग घायल’। मैं आज तक ‘महिला’ पर इस बल को समझ नहीं पायी हूँ महिला ‘लोग’ में शामिल नहीं है, उसकी जान ज्यादा कीमती है, उससे मरने या घायल होने की अपेक्षा नहीं की जाती है, या फिर पुरुष तो मरने के लिए ही होते हैं, उनका मरना कोई खास खबर नहीं है! 

4. ‘…….. नेता ने सरकार पर बड़ा हमला बोला’, ‘सरकार की घोषणा से लोगों के आँसू निकले’, ‘ननद ने खुशी से दरवाजा खोला, अंदर देखा काँप गई रूह’, ‘लोगों ने घर के अंदर जो देखा उस पर नहीं हो रहा किसी को विश्वास, फटी रह गई आंखे’, ‘अंदर का नजारा ऐसा नहीं कर सकेंगे आँखों पर विश्वास’, ‘बुढ़ापे में ये हाल किया, लोगों ने कहा भगवान ऐसा बेटा किसी को न दे’, जैसे हेडलाइंस पहले सनसनी परोसते हैं तब अंदर थोड़ी बहुत हो सकता हो, खबर मिल जाए या नहीं भी मिल सकता है। इतने शब्दों में खबर को हेडलाइन में दिया जा सकता था।

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5. सोशल मीडिया में हेडलाइंस का आजकल एक और ट्रेंड देखा जा रहा है ‘….. ने कहा मुझे बड़ा……’, ‘……..ने किया बड़ा खुलासा’, ‘…..ने बेड पर लिटा कर….’, वाक्य पूरा करने के बदले या तो read more… लिख कर छोड़ दिया जाता है, या फिर पाठकों और दर्शकों की कल्पना पर। कुछ ज्यादा उत्सुक लोग सच में पढ़ने या देखने भी लग जाते हैं, बस हेडलाइन अपना काम कर गया।   

6. ‘मुठभेड़ में दो बदमाश ढ़ेर’, ‘2 बच्चों की माँ प्रेमी संग फरार’, जैसे उच्च कोटी के उपमा अलंकार से युक्त और ‘……..ने बनाई अपने गमले के बैंगन का भरता’, ‘……..परिवार संग डिनर डेट पर गई’ जैसे ‘अत्यंत महत्वपूर्ण’ खबरे लगभग हर मीडिया चैनल के वैबसाइट पर सबसे प्रमुखता से आपको मिलेंगे।

सच तो यह है कि अब खबर या आलेख लिखने से ज्यादा मेहनत उसके लिए अधिक आकर्षक, उत्तेजक, और ट्रेंडिंग हेडलाइन ढूँढना में लगाया जा रहा है।