इलाहाबाद हाइ कोर्ट का एक फैसला इन दिनों बहुत सुर्खियां बटोर रहा है। लोग सोशल मीडिया पर भर भर कर जज साहब को खरीखोटी सुना रहे हैं। कारण यह है कि जज साहब ने अपने फैसले में कहा है कि लड़की के प्राइवेट पार्ट को छूना, नीचे के कपड़े खींचना और उसे जबर्दस्ती एकांत की तरफ ले जाना रेप के लिए प्रयास नहीं माना जा सकता है। लोगों को यह निर्णय समझ में नहीं आ रहा है। वास्तव में कई बार कानूनी परिभाषा इतनी तकनीकी होती हैं कि कॉमन सेंस से समझने वाले लोगों के लिए इस पर विश्वास करना कठिन हो जाता है।
कानून में हर अपराध की एक निश्चित परिभाषा होती है। अपराध के कुछ अवयव होते हैं। कोर्ट पहले यह देखता है कि वे अवयव पूरे हो रहे हैं या नहीं। तकनीकी परिभाषा बनाने का कारण यह होता है कि निर्णय में एकरूपता रहे। लेकिन इसका परिणाम कभी-कभी बड़ा ही अजीब सा आ जाता है। इससे पहले भी ‘स्किन टु स्किन’ आदि कई विवादास्पद निर्णय आ चुके हैं।

सबसे पहले देखते हैं केस क्या था? 11 वर्ष की एक बच्ची के साथ दो लड़कों ने मिलकर इस तरह के कृत्य किए और उसे अधिक एकांत जगह में ले जाने लगे। पर इसी बीच उधर से गुजरने वाले लोगों की नजर उन पर पड़ गई। लोगों को देख कर दोनों लड़के बच्ची को छोड़ कर भाग गए। बच्ची और उन राहगीरों (गवाहों) के बयान के आधार पर केस शुरू हुआ।
ट्रायल कोर्ट ने उन्हें रेप के प्रयास का दोषी मानते हुए आईपीसी एवं पोक्सो एक्ट के संबन्धित धाराओं के तहत केस शुरू किया। लेकिन आरोपियों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में धारा बदलवाने के लिए अपील किया।
हाई कोर्ट ने इन तर्कों को ध्यान में रखा (observed):
1. अगर अभियोजक पक्ष (लड़की और उसके गवाह) की बातों को भी माने तो इससे ऐसा साबित नहीं होता है कि वे दोनों रेप का ही इरादा रखते थे। आरोपियों के अपने में कोई ऐसा परिवर्तन नहीं किया था (जैसे अपने कपड़े उतारना);
2. लड़की को निर्वस्त्र नहीं किया था;
कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि प्रयत्न (attempt) तैयारी (preparation) से आगे की स्थिति होती है। लेकिन इस केस में ऐसा कुछ सिद्ध नहीं किया जा सका है। चूंकि न तो आरोपियों का इरादा सिद्ध हो सका न ही प्रयत्न इसलिए उन्हे रेप प्रयत्न के बदले अन्य अपराधों के लिए ट्रायल चलाया जा सकता है। यानि उन पर 376 आईपीसी (रेप) और 18 पोक्सो (अपराधों के प्रयत्न के लिए दण्ड) के तहत नहीं बल्कि 354B आईपीसी (प्रहार या निर्वस्त्र करने के लिए आपराधिक बल प्रयोग (assault or use of criminal force with intent to disrobe), और पोक्सो एक्ट (POCSO Act के सेक्शन 9-10) के तहत aggravated sexual assault के लिए केस चलाया जा सकता है। इन्हीं धाराओं में केस चलाने के लिए कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को ऑर्डर दिया है।
इन धाराओं में कम सजा है और यही विवाद का मूल कारण हैं। तकनीकी दृष्टि से हो सकता है यह रेप का प्रयत्न नहीं हो लेकिन एक सामान्य इंसान की दृष्टि से यह इसके सिवा कुछ और नहीं हो सकता है।
कानून के क्षेत्र में तकनीक और व्यवहार में अंतर का यह एक और बेमिशाल उदाहरण बन गया है।
केस का नाम– आकाश एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (Akash & Ors V. State of UP & Ors) Criminal Revision No.- 1449 of 2024
जजमेंट की तारीख– 17 मार्च 2025 (केस जजमेंट के लिए 13 मार्च को रिजर्व किया गया था)
कोर्ट- इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad high court)
जज- राम मनोहर नारायण मिश्रा