सिस्टम आम लोगों तक पहुंचने के लिए, उन्हें सहूलियतें देने के लिए लगातार प्रयास करता है। लोग भी जागरूक होते जा रहे हैं। फिर आम लोग इस सर्कल में कैसे फंस जाते है। कुछ उदाहरण इस सीरीज में दिया जा रहा है। नाम काल्पनिक है लेकिन घटनाएं वास्तविक। मैं यह खुशफहमी भी पाल कर चल रही हूं कि सिस्टम में सभी ईमानदार हैं और अपना काम अच्छे से कर रहे हैं।
भाग – 1
आज बात करते हैं एक प्रवासी दैनिक मजदूर की जिसकी सबसे बड़ी समस्या है कि उसे गैस सिलेंडर ब्लैक में लेना पड़ता है, बीवी भाग गई यह नहीं। पर उस बेचारे को यह भी नहीं पता कि आगे और बड़ी मुसीबत आने वाली है उस पर।
दिनेश दिल्ली में दैनिक मजदूरी करता है। वह बिल्कुल ही निरक्षर है पर अपने चार बच्चों को पढ़ना चाहता है। दिल्ली आने पर उसकी एकमात्र कामना यही थी कि वह अपने परिवार को भी यहां बुला ले और बच्चों का स्कूल में एडमिशन करवा दे।
इसके लिए उसने कड़ी मेहनत की। कई लोगों के साथ एक छोटे से रूम में रहा। फिर एक दिन ऐसा भी आया कि वह अपने परिवार को दिल्ली ले आया। कुछ दिन रेंट पर रहने के बाद उसने एक अनधिकृत कॉलोनी में 22 या 25 गज का घर (फ्लैट) खरीदने का मन बनाया।
सस्ते घर और उसके दस्तावेज इत्यादि में कोई धोखाधड़ी नहीं हो, इसलिए उसने एक पढ़े लिखे :समझदार ‘ व्यक्ति की मदद ली। उसका नाम था अशोक। उसे सुझाव दिया गया कि पत्नी के नाम से घर खरीदना सस्ता पड़ेगा। इसलिए उसके नाम से ही घर खरीदा। बिजली, पानी, गैस का कनेक्शन भी पत्नी के नाम से ही लिया गया क्योंकि घर की मालिक वही थी।
घर खरीदने के सिलसिले में अशोक का दिनेश के घर आना जाना होने लगा। धीरे धीरे वह दिनेश की गैर मौजूदगी में भी आने लगा। उसका दिनेश की पत्नी से प्रेम संबंध बन गया।
दिनेश को यह बात पता चली। उसे बुरा भी लगा। लेकिन पत्नी और अशोक दोनों ही उसके वश से बाहर थे। थोड़े बहुत झगड़े और समझाने का काम होता रहा।
एक दिन रात को जब दिनेश घर आया तो बच्चों ने बताया कि जब वो लोग स्कूल में थे तब मां घर की चाभी पड़ोस वाली आंटी को यह कह कर दे गई कि वह कहीं जा रही है, बच्चे आएं तो घर की चाभी उन्हें दे दे।
फोन स्विच ऑफ था। दिनेश अशोक के घर पहुंचा। पत्नी वहीं थी। लेकिन वह उसके साथ आने के लिए तैयार नहीं थी। उसने पूरी बेशर्मी से कह दिया कि वह अशोक से प्रेम करती है और उसके साथ ही रहेगी। बच्चों का वास्ता भी उसके निश्चय को डिगा नहीं सका।
दिनेश इसे अपनी किस्मत मान कर चुप रह गया। वह जानता था कि अशोक से लड़ना उसके वश की बात नहीं थी। बच्चे भी ताना सुनते थे कि उनकी मां भाग गई। लेकिन वे क्या करते। सबसे बड़ी बेटी करीब 14 साल की थी।
पिता और चारों बच्चों की जिंदगी कट रही थी। समस्या तब हुई जब गैस सिलेंडर खत्म हो गया। पत्नी सारे महत्वपूर्ण दस्तावेज और अपने सारे कीमती एवं उपयोगी चीजें लेकर गई थी। इनमें गैस कनेक्शन के दस्तावेज भी थे। दस्तावेज के बिना गैस नहीं मिलता। दिनेश ने अपनी समस्या बताया कि सब कुछ पत्नी के नाम से और उसके पास है। यह भी कि अब वह उसके साथ नहीं है। डीलिंग स्टाफ ने सुझाव दिया कि वह नया कनेक्शन ले ले, इसके लिए कम से कम रेंट एग्रीमेंट या कोई अन्य दस्तावेज और 6000 रुपया दे। उसने यह भी बताया कि उसके नाम से ट्रांसफर तभी हो सकता है जब वह कोर्ट से तलाक का ऑर्डर दे।
अभी तक दिनेश कोर्ट और वकीलों से बच रहा था। अब तो तलाक का दस्तावेज चाहिए। किसी ने उसे बताया कि उसे कोर्ट में तलाक का केस डालना होगा। दिनेश ने किसी तरह पैसे जमा कर केस डाल दिया।
कोर्ट ने पत्नी को जवाब देने के लिए बुलाया। पत्नी का दो एड्रेस दिनेश ने दिया। एक जहां वह अभी रह रही थी यानी अशोक का घर और दूसरा उसका मायके, जो कि किसी दूसरे राज्य में था।
अशोक के घर से नोटिस इस रिपोर्ट के साथ आ गया कि इस नाम की कोई वहां नहीं रहती। मायके वाले नोटिस में दो तारीख को तो कोई रिपोर्ट ही नहीं आई पर तीसरे में पत्नी की तरफ से एक वकील पेश होकर जवाब दे दिया।
पत्नी की तरफ से जवाब में कहा गया कि पति उसे मारता पीटता था, इसलिए उसके साथ रहना संभव नहीं रहा। अब वह अलग रह कर दूसरों के घरों में काम कर किसी तरह मुश्किल से अपना गुजारा करती है। इस जवाब के बाद पत्नी की तरफ से कोई नहीं आया।
बेचारे दिनेश को यह समझ में नहीं आ रहा है कि ‘ उसकी पत्नी भाग गई तो जज साहब को यह समझ में क्यों नहीं आता कि उसका कलक्टर (कैरेक्टर) खराब था’
जज साहब सोच रहे हैं कि यह हो सकता है पति खुद ही पत्नी को घर से भगा कर तलाक के लिए बहाने कर रहा हो। पत्नी को सुनवाई का अवसर तो देना ही चाहिए कम से कम।
दिनेश बता रहा है ब्लैक से सिलेंडर लेना कितना महंगा पड़ रहा है। मैं सोच रही हूं यह तब कैसे मैनेज करेगा जब घर का रेंट भी देना पड़ेगा। वह किराएदार भी तो नहीं है कि उसका कोई अधिकार होता।