रसोई के डॉक्टर्स  

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सर्दी खतम हो रही है और वसंत का सुहाना ऋतु आ रहा है। प्रकृति का नव शृंगार इस समय मन को एक अनजाना सा आनंद देता है। लेकिन साथ ही मौसम में परिवर्तन हमारे स्वास्थ्य पर कुछ प्रतिकूल प्रभाव भी डालता है। प्रकृति का नियम है, जहाँ समस्या होती है, वहाँ समाधान भी होता है। जहाँ बीमारी होती है, वही इलाज भी होता है। तो क्यों न डॉक्टर के पास जाने से पहले हम अपने आसपास के ऐसे प्राकृतिक डॉक्टर्स से सहायता ले। आज इस आलेख में हम कुछ ऐसी वस्तुओं के चिकित्सीय गुणों के विषय में बात करेंगे जो हम सब के रसोई में सामान्य रूप से पाए जाते हैं। ये सर्व सुलभ होने के साथ-साथ सस्ती भी होती हैं और इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है। तो जानते हैं रसोई के ऐसे कुछ वस्तुओं के विषय में:

हल्दी

       हल्दी के बिना तो किसी भारतीय रसोई का काम चल ही नहीं सकता। साथ ही शायद ही कोई भारतीय हो जिसने कभी यह सलाह नहीं सुना हो की ‘दूध में हल्दी डाल कर पी लो’ ‘चोट पर हल्दी की पट्टी कर लो’ इत्यादि। सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में भी इसका उपयोग होता है। यहाँ तक कि शादी में एक रस्म ही हल्दी लगानने का होता है। यानि कि इसके औषधीय गुणों से लगभग सभी आम या खास भारतीय परिचित होते हैं। यह शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता (Immunity system) को बढ़ता है। साथ ही संक्रामण रोधी (Antiseptic and antimicrobial) भी होता है। इसीलिए किसी घाव, काटने, छीलने से लेकर सर्दी खांसी तक में इसका प्रयोग किया जाता है। इसमें दर्द निवारक गुण भी होते हैं।

प्रयोग का तरीका- संक्रमण रोकने के लिए नारियल तेल के साथ मिला कर घाव पर लगाना चाहिए। रोग प्रतिरोधी क्षमता के लिए दूध, पानी, अदरख, और काली मिर्च के साथ मिला कर पीना अधिक फायदेमंद होता है।

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नमक

       नमक खाने में तो जान डाल ही देता है। कई रूपों में शारीरिक समस्या से बचाव में भी काम आता है। दाँत दर्द में गुनगुने पानी में नमक डाल कुल्ला करना और टॉन्सिल में गुनगुने पानी में नमक डाल कर गार्गिल करना सबसे सामान्य उपयोग है। गार्गिल करने के लिए पानी में नमक की मात्रा एक गिलास पानी में कम से कम आधा टेबल चम्मच रखें क्योंकि नमक और पानी का घोल जितना सांद्रित होगा osmosis की प्रक्रिया द्वारा टॉन्सिल के सूजन को उतनी जल्दी कम करेगा। नमक देर से गरम और देर से ठंढा होता है। इसलिए चोट या गिल्टि की स्थिति में नमक की पोटली से सेकाइ करने की सलाह भी दादी-नानी देती थीं।

 लहसुन

       लहसुन में एलीन (Alliin) नामक तत्त्व पाया जाता है। यह एलीसीन (Allicin) नामक तत्त्व में परिवर्तित हो जाता है। एलीसीन सल्फर का एक एक मिश्रित अपरूप होता है। इसी के कारण लहसुन में विशेष प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं। यह शरीर को डिटोक्स करने का सबसे सरल प्रकृतिक उपाय है। शरीर के अंदर के हानिकारक कृमि और जीवाणु (बैक्ट्रिया) को यह नष्ट करता है। यह दर्द और घाव के विस्तार को रोकने में भी कारगर होता है। लहसुन के प्रयोग का तरीका भी सरल है। इसे कुचल कर सब्जी या दाल में मिला कर पकाने से या कच्चा खाने से भी इसके औषधीय गुणों का लाभ मिल सकता है। पलकों पर गुहेरी या बिलोनी (stye) अगर हो तो वहाँ लहसुन की छीली हुई कली को दबाबे से आराम मिलता है।

अदरख

       इसका स्वाद और सुगंध तो लाजवाब होता ही है, इसके औषधीय गुण भी बेमिशाल होते हैं। यह सूजन, जलन (Anti-inflammatory) या दर्द (analgesic) कम करने में बहुत उपयोगी होता है। इसे पकाने से इसके bioactive compound टूट कर Shogaols नामक तत्त्व बनाते हैं। यह जुकाम में लाभकारी होता है। इसमें खून को पतला करने का भी गुण होता है। इसलिए जिन्हें खून में थक्का बनने की समस्या तो या स्ट्रोक हुआ हो उनके लिए अदरख बहुत अच्छा। अदरख पाचन क्रिया को ठीक रखने में सहयोगी होता है। इसे काट कर, कुचल कर या पीस कर गर्म पानी, चाय सब्जी में डाल कर आसानी से प्रयोग किया जा सकता है। सर्दी जुकाम में शहद और काली मिर्च के साथ मिला कर अदरख का रस लेना या काढ़ा में मिला कर लेना भी फायदेमंद होता है।

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काली (गोल) मिर्च

       काली मिर्च में पिपराइन (Piperine) नामक एक विशेष तत्त्व पाया जाता है। इस तत्त्व का मुख्य काम यह है कि यह शरीर द्वारा भोजन के माध्यम से आए पोषक तत्त्वों के अवशोषण की क्षमता को बढ़ा देता है। साथ ही शरीर के थर्मोजेनेसिस (Thermogenesis) की प्रक्रिया यानि शरीर द्वारा आंतरिक ऊष्मा उत्पन्न करने की क्षमता को भी बढ़ा देता है जिससे पाचन क्रिया (metabolism) बेहत्तर होता है। आशय यह की काली मिर्च स्वयं शरीर को कोई विशेष पोषक तत्त्व नहीं देता है लेकिन शरीर की वह क्षमता बढ़ा देता है कि भोजन से मिलने वाले पोषक तत्त्वों का ज्यादा उपयोग कर सके। इसका परिणाम यह होता है कि इसके उपयोग से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर गर्म रहता है। भोज्य पदार्थ, गुनगुने पानी या चाय में सबूत या पाउडर के रूप में मिला कर इसका उपयोग किया जा सकता है।      

जीरा

छोटे से जीरे में बड़ी मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्त्व पाए जाते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्त्व वैसे खनिज तत्त्व (मिनरल्स)  होते हैं जो शरीर को बहुत कम मात्रा में चाहिए होता है लेकिन इनकी कमी की वजह से शरीर की कार्यशीलता सही नहीं रह पाती। जीरे में आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीज, जिंक एवं मैग्निशियम सूक्ष्म पोषक तत्त्व पाए जाते हैं। इतना ही नहीं बिटमिन ई, ए, सी और बी कॉम्प्लेक्स का भी यह अच्छा स्रोत है। फाइबर और एंटी-ऑक्सीडेंट के कारण इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। यही कारण है कि मांसपेशियों के दर्द, आंखो की समस्या और पाचन संबंधी समस्या में जीरे का उपयोग बहुत फायदेमंद होता है।      

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       पानी या छाछ में एक छोटा चम्मच भुने जीरे का पाउडर मिला कर पीने से पाचन संबंधी समस्या दूर होती है। पानी में एक चुटकी भून जीरा पाउडर, थोड़ी अदरक, सेंधा नमक और आधी चम्मच सौंफ डाल कर उबालने के बाद ठंढा पर पीने से कब्द और महिलाओं को होने वाली पीरियड संबंधी दर्द से निजात मिलता है। जीरा पानी उबाल कर उसे ठंढा कर पिलाने से छोटे बच्चों को पेट दर्द से राहत मिलता है। हरम दूध में मिला कर पीने एनीमिया से ग्रस्त महिलाओं और प्रसव से बाद माताओं के लिए बहुत लाभप्रद होता है क्योंकि इसमें आयरन और कैल्शियम भरपूर होता है। शरीर का वजन और कोलेस्ट्रॉल कम करने, यदाश्त बढ़ाने, अच्छी नींद लाने इत्यादि अनेक लाभों के लिए इसका भिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है। अगर आँखों में चोट लग हो, या  जलन हो रही हो, तो जीरे को हाथ पर हल्के हाथों से मसल लें ताकि उनकी डंठल हट जाए। साफ पानी से धो लें। फिर इसे साफ ठंढे पानी में भींगने के लिए डाल दें। कुछ घंटे बाद साफ कपड़े से छान कर इसे आँखों में लेने से आराम मिलता है। 

(यह सामान्य जानकारी के लिए है कोई चिकित्सीय सलाह नहीं)

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