आध्यात्मिक जीवन, आनंदमय जीवन

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एक व्यक्ति को बहुत डर लगता था। कभी अंधेरे से, तो कभी अकेलेपन से, कभी अनजान चीजों से। उसके डर का कोई कारण नहीं होता था। केवल डर था। कई मनोवैज्ञानिकों से दिखाया गया। मनोवैज्ञानिकों ने पता लगाया कि उस व्यक्ति के बचपन में कोई ऐसी दुर्घटना हुई थी, जिसका डर उसके अवचेतन मस्तिष्क में बैठ गया था। चेतन मस्तिष्क को उस घटना की याद नहीं थी, और वह भी जानता था कि डर का कोई कारण नहीं है। लेकिन फिर भी अवचेतन मस्तिष्क का डर उस पर हावी था। मनोवैज्ञानिकों के पास ऐसे कई किस्से होते हैं जब लोग अवचेतन मन के किसी विचार के कारण तकलीफ सहते हैं। आध्यात्म इसी अवचेतन स्तर पर व्यक्ति को सचेत और आनंदित करता है।

      कई लोग मानते हैं कि आध्यात्मिक जीवन त्याग और तपस्या का जीवन होता है इसलिए यह शुष्क और कठोर होता है। लेकिन ऐसा वे लोग सोचते हैं जो धर्म, कर्म और आध्यात्म के विषय में नहीं जानते हैं और उन्हें एक ही मानते हैं। वास्तव में आध्यात्म का अर्थ है अपने आप का साक्षात्कार करना, अपने अवचेतन मन को चेतन स्तर पर जानने का प्रयास करना। आध्यात्मिक व्यक्ति अपनी खुशियों के लिए बाहरी दुनिया पर निर्भर नहीं होता है अपितु अपने अंदर अपनी दुनिया रखता है। भौतिक वस्तुओं के उपयोग से परहेज नहीं करता अपितु उसके बंधनों से परहेज करता है। 

आध्यात्मिक होने के ये पहचान हैं:

आत्मवत सर्वभूतेषु: आध्यात्मिक व्यक्ति अपने अंतरात्मा की प्रतिकृति ही बाह्य जगत में भी देखते हैं। जिस परमसत्ता का अंश उस में है वही सृष्टि के सभी प्राणियों में है। अतः प्राणिमात्र के लिए करुणा आध्यात्मिकता की पहचान होती है। वे भौतिकता के परे जीवन का अनुभव करने लगते हैं।

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आंतरिक उन्नयन: यह बाह्य दुनिया से पलायन नहीं बल्कि आंतरिक दुनिया का उन्नयन है। जब बाह्य दुनिया से संबंध नहीं तब धर्म, संप्रदाय या पूजा पद्धति भी अप्रासंगिक है। अहंकार, क्रोध, लालच, ईर्ष्या इत्यादि अपनेआप समाप्त होने लगते हैं। आध्यात्मिक दर्शन व्यक्ति के सोचने के तरीके में परिवर्तन कर उसकी बहुत सी समस्याओं को समाप्त करने में सहयोग करता है। 

अपनी खोज: अपनी आंतरिक दुनिया में मस्त रहते हुए भी बाहर के सृष्टि की विशालता का भी अनुभव उसे होता है। वह जानता है कि इस विशाल सृष्टि में उसकी हैसियत क्या है! इसलिए वह सब कुछ स्वयं ठीक करने के लिए अपने से अधिक अपेक्षा नहीं रखता। इसलिए अगर कुछ बुरा या प्रतिकूल भी हो तो इसे सृष्टि का सामान्य नियम मान कर स्वीकार करता है और पूरी जीवंतता से जीता है। किन्तु वह अपने आंतरिक शक्ति को भी पहचानता है। इसलिए वह अपने दुख, क्रोध, चिंता आदि का कारण अपने अंदर ही खोजता है, दूसरों को, यहाँ तक कि भगवान को भी, इसके लिए जिम्मेदार नहीं मानता है। इसीलिए वह नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक बना रहता है। 

एकाग्रता: आध्यात्मिक व्यक्ति जो भी करता है पूरी एकाग्रता से करता है क्योंकि उसे हार-जीत, अच्छे-बुरे या भूत-भविष्य की चिंता नहीं होती है। जो काम करता है, जो भी परिस्थितियाँ सामने होती हैं उसमें उसे आशावाद दिखता है और उसमें ही वह प्रसन्नता का कारण ढूंढ निकालता है।

ध्यान: ध्यान अवचेतन मस्तिष्क को सचेत कर आध्यात्मिक यात्रा में सहयोग करता है।

      वास्तविक अर्थ में आध्यात्म का अर्थ होता है दुनियावी और मानसिक बंधनों से परे होना। बंधन मुक्त और आनंद की मनःस्थिति व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर स्वस्थ रखने में सहयोग करता है। वर्तमान में अनेक अध्ययन हुए हैं जो बताते हैं कि आध्यात्मिक व्यक्ति अधिक स्वस्थ और आनंदमय जीवन जीते हैं।

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